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वाराणसी: BHU कैंपस में चंदन चोरी पर NGT सख्त, सुरक्षा के बावजूद पेड़ कैसे गायब हुए, कोर्ट ने किया सवाल

वाराणसी: BHU कैंपस में चंदन चोरी पर NGT सख्त, सुरक्षा के बावजूद पेड़ कैसे गायब हुए, कोर्ट ने किया सवाल

एनजीटी ने बीएचयू कैंपस में चंदन चोरी मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन से कड़ी सुरक्षा के बावजूद पेड़ों के गायब होने पर सवाल उठाए, साथ ही जिलाधिकारी और प्रभागीय वनाधिकारी की गैरहाज़िरी पर नाराज़गी जताई।

वाराणसी: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) कैंपस में चंदन समेत कई बहुमूल्य पेड़ों की चोरी के मामले ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की सख्ती झेलनी शुरू कर दी है। सोमवार को सुनवाई के दौरान NGT ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए पूरे घटनाक्रम को संदेहास्पद बताया। न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने बीएचयू से पूछा कि “इतनी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद भारी-भरकम चंदन के पेड़ परिसर से बाहर कैसे निकले? क्या चंदन की लकड़ियां कोई गठरी थीं जो आसानी से छिपाकर ले जाई गईं?”

बीएचयू के अधिवक्ता द्वारा यह कहे जाने पर कि वह "पौधे" थे, न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने फटकार लगाते हुए कहा कि बीएचयू पूर्व में स्वयं यह स्वीकार कर चुका है कि वे पूर्णविकसित पेड़ थे, न कि पौधे। इसके बाद NGT ने चेतावनी दी कि क्यों न बीएचयू पर भारी जुर्माना लगाया जाए। इस पर विश्वविद्यालय के वकील ने दो सप्ताह का समय मांगा, जिसे पीठ ने सशर्त मंजूर किया।

इस गंभीर मामले में जिलाधिकारी और प्रभागीय वनाधिकारी के अधिवक्ताओं की गैरहाज़िरी ने स्थिति को और भी संदिग्ध बना दिया। न्यायमूर्ति श्रीवास्तव ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि पूरा प्रशासन विश्वविद्यालय से मिला हुआ है।” इस वक्तव्य ने मामले की संवेदनशीलता और गहराई को और उजागर किया। याचिकाकर्ता और अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पक्ष रखते हुए कहा कि न सिर्फ चंदन के 8 पेड़ चोरी हुए हैं, बल्कि उनके अलावा आम के 6, गोल्ड मोहर के 3, महुआ के 2 और कटहल का एक पेड़ भी अवैध रूप से काटे गए हैं।

बीएचयू प्रशासन की ओर से यह तर्क दिया गया कि बागवानी विभाग की रिपोर्ट के अनुसार ये पेड़ छात्रों के लिए खतरा बन चुके थे। कैंपस में 40 हजार छात्र रहते हैं और एक घटना में भौतिक विज्ञान के एक छात्र पर पेड़ गिर भी चुका है। इस पर विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए सेंथिल वेल ने कहा कि “अगर दिल्ली में तूफान से एक पेड़ गिर जाए तो क्या पूरे शहर के पेड़ काट दिए जाएंगे?” यह टिप्पणी स्पष्ट रूप से बीएचयू की दलीलों को कमजोर करती दिखी।

एनजीटी ने एफआईआर के विवरणों में विरोधाभास की ओर भी ध्यान दिलाया। वर्ष 2018 और 2023 में दर्ज दो अलग-अलग एफआईआर में चंदन के चार-चार पेड़ चोरी होने का उल्लेख है, लेकिन हालिया रिपोर्टों में सात या आठ पेड़ों के कटने की बात कही गई है। न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने इस अंतर को लेकर कहा कि यदि शुरुआत में चार पेड़ों की चोरी दर्ज की गई थी तो बाद में संख्या कैसे बढ़ गई और फिर दोबारा संख्या बदल क्यों गई? यह स्पष्ट करता है कि या तो तथ्यों को छिपाया गया है या कोई साजिश है।

सबसे गंभीर आरोप तब सामने आए जब अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने कहा कि बीएचयू प्रशासन ने चोरी के दिन लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज सार्वजनिक नहीं की और संभवत: उसे जानबूझकर दबा दिया। उन्होंने यह भी कहा कि इतनी कड़ी सुरक्षा वाले कैंपस में पेड़ों की तस्करी केवल आंतरिक मिलीभगत से ही संभव हो सकती है।

अब जब एनजीटी ने मामले में दो सप्ताह की मोहलत दी है, तो आने वाली सुनवाई में यह तय होगा कि बीएचयू को कोई दंडित कार्रवाई झेलनी पड़ेगी या नहीं। लेकिन जिस तरह से न्यायिक मंच पर प्रशासनिक तंत्र की जवाबदेही को सवालों के घेरे में लाया गया है, उससे यह साफ है कि मामला केवल पेड़ों की चोरी का नहीं, बल्कि संस्थागत पारदर्शिता और ईमानदारी का भी है।

एनजीटी की अगली सुनवाई इस बात पर केंद्रित हो सकती है कि बीएचयू अपने सुरक्षा और निगरानी तंत्र की पारदर्शी रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत कर पाता है या नहीं। अगर वह ऐसा नहीं कर पाता तो संभव है कि इस ऐतिहासिक और प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान पर न सिर्फ भारी जुर्माना लगे, बल्कि उच्चस्तरीय जांच की भी सिफारिश की जाए।

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