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वाराणसी: गोस्वामी तुलसीदास जी के पुण्य तिथि पर, संकटमोचन में स्थापित हुआ 1100 किलो वजनी घंटा

वाराणसी: गोस्वामी तुलसीदास जी के पुण्य तिथि पर, संकटमोचन में स्थापित हुआ 1100 किलो वजनी घंटा

वाराणसी के संकट मोचन मंदिर में श्रावण मास में 1100 किलो का पीतल का घंटा स्थापित किया गया, जो भक्तों की आस्था, समर्पण और संत तुलसीदास जी की पुण्यतिथि का प्रतीक है।

वाराणसी: संकट मोचन मंदिर में एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक क्षण साकार हुआ, जब 1100 किलोग्राम वजनी एक भव्य पीतल का घंटा मंदिर प्रांगण में विधिवत प्रतिष्ठित किया गया। यह आयोजन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान था, बल्कि संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें समर्पित एक सामूहिक श्रद्धांजलि भी था। जनश्रुति के अनुसार, "श्रावण श्यामा तीज शनि, तुलसी तज्यो शरीर", अर्थात इसी दिन उन्होंने अपने शरीर का त्याग किया था।

श्रावण मास के इस पावन दिन पर संकट मोचन हनुमान जी के चरणों में यह विराट घंटा स्थापित कर संपूर्ण वाराणसी ने अपनी आस्था और श्रद्धा को एक मूर्त रूप प्रदान किया है। यह घंटा केवल एक धातु का ढांचा नहीं, बल्कि हजारों भक्तों की वर्षों की निष्ठा, समर्पण और प्रेम का प्रत्यक्ष प्रतीक है। कोरोना काल के दौरान जब विश्व ठहर सा गया था, तब भी श्रद्धालुओं ने संकट मोचन मंदिर में अपनी छोटी-छोटी पीतल की घंटियाँ अर्पित करना नहीं छोड़ा। उन सभी समर्पित घंटियों को मंदिर प्रशासन ने सावधानीपूर्वक संकलित कर एक नई जीवंतता दी और उन्हें एक विशाल स्वरूप प्रदान किया, जिससे यह 1100 किलो वजनी घंटा निर्मित किया गया।

इस खास घंटा की ध्वनि अब संकट मोचन मंदिर में नियमित रूप से गुंजायमान होगी, जो न केवल वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देगी बल्कि हर उस श्रद्धालु के हृदय में भी अनुगूंज बनकर बजती रहेगी, जिसने अपने सामर्थ्य से इस घंटा निर्माण में योगदान दिया है। इसकी विशेषता सिर्फ इसका आकार या धातु नहीं, बल्कि वह भावना है जिसमें इसे ढाला गया है, शुद्ध पीतल के साथ शुद्ध मन से भी।

इस ऐतिहासिक प्रतिष्ठा समारोह की अध्यक्षता करते हुए मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभरनाथ मिश्र ने कहा, “यह घंटा केवल एक ध्वनि नहीं है, यह हमारे भक्तों की सामूहिक साधना और श्रद्धा का स्वरूप है। संकट मोचन के चरणों में यह समर्पण भविष्य में एक नई धार्मिक परंपरा का आरंभ करेगा। यहां आने वाला हर भक्त जब इस घंटे की ध्वनि सुनेगा, तो उसे अपने समर्पण की अनुभूति होगी।” उन्होंने आगे यह भी कहा कि संकट मोचन मंदिर में यह अनूठा प्रयास समाज को एकजुट श्रद्धा और धर्म के आधार पर संगठित करने का प्रतीक बन जाएगा।

इस घंटे की स्थापना को एक भावात्मक श्रद्धांजलि के रूप में देखा जा रहा है। विशेषकर उस महान संत तुलसीदास जी को, जिन्होंने रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका जैसे अनमोल ग्रंथों की रचना कर भारतीय संस्कृति को अमरत्व प्रदान किया। उनकी पुण्यतिथि पर यह घंटा उनके प्रति भक्तों की तरफ़ से एक सामूहिक प्रणाम है। एक ऐसी प्रस्तुति जो भावनाओं में डूबी हुई है और हनुमान भक्ति में समर्पित तुलसीदास जी की स्मृति को सजीव बनाती है।

इस आयोजन के साथ संकट मोचन मंदिर में एक नया अध्याय जुड़ गया है, जो आने वाले वर्षों में केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भों में भी प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा। श्रद्धालुओं के लिए यह घंटा महज एक मंदिर की शोभा नहीं, बल्कि उनके जीवन की धड़कन का हिस्सा बन गया है। और इसकी गूंज वर्षों तक न सिर्फ़ मंदिर परिसर में, बल्कि उनके हृदयों में भी प्रतिध्वनित होती रहेगी।

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